Thursday 4 December 2014

सत्य

                                                            सत्य

एक सत्य गांधी का है जिसका पर्याय अहिंसा है । एक सत्य हरीशचंद्र का है जो अंतत: त्याग से जुड़ता है । एक सत्य हमारा भी है, जिससे बच कर भागते भागते हम सब प्रवासी कहलाने लगे ।
सत्य शाश्वत है । सत्य सर्वव्यापी हो सकता है , मगर फिर भी हमें “अपने सत्य” की तलाश में पिछड़ना नही चाहिए । अपने प्रति सत्यनिष्ठ होना ही परम पिता से जुड़ना है ।
असल मे जिन तत्वो से संसार का निर्माण हुआ है , वे सब द्रुतगति से भाग रहे हैं । और यही कारण है की उन तत्वो से निर्मित अन्य वस्तुए नश्वर हैं, जो नित दिन बनती बदलती और नष्ट होति नज़र आती है । मगर सत्य और उसका अस्तित्व मृत्युन्जय है । । उसके परिणाम दूरगामी हैं। उसकी उपलब्धि से जो हित साधन होने वाला है वह चिरस्थायी है ।
जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं अथवा चलने के लिए विवश किये जा रहे हैं यदि वह असत्य और अन्याय से भरा है—उससे आदर्शों का हनन होता है और भ्रष्ट परम्पराएँ जन्मती हों तो हमे उसका विचार छोड़ ही देना चाहिए।
सत्य और न्याय के पीछे चलने में हमें सब कुछ छोड़ना पड़ता हो तो उसके लिए अपने को तैयार करना चाहिए। सत्य ही परमेश्वर है। उससे बढ़कर इस संसार का सारतत्त्व और कुछ नहीं है। सत्य अपने हाथ रहा और उसके बदले सब कुछ चला गया तो हर्ज नहीं, किन्तु यदि सत्य को गँवा कर कुबेर की सम्पदा और इन्द्र का सिंहासन भी पाया तो समझना चाहिए कि यह बहुत महंगा और बहुत घाटे को सौदा खरीदा गया है।

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